आजादी के बाद देश की राजनीति पर नेहरू गांधी परिवार का गहरा असर रहा है।परिवार के तीन सदस्य देश के प्रधान मंत्री बनने का गौरव हासिल कर चुके है।एक समय ऐसा था कि नेहरू गांधी परिवार के बिना देश की राजनीति की कल्पना करना भी मुश्किल था।लेकिन पिछले दस वर्षों में हालत इस कदर बदल चुके है कि 18वीं लोकसभा में नेहरू गांधी परिवार के किसी सदस्य के पहुंचने पर ही प्रश्न चिन्ह लग गया है।

1952 में जवाहर लाल नेहरू देश के पहले प्रधान मंत्री बने और अपनी मृत्यु तक इस पद पर बने रहे। 1966 में लाल बहादुर शास्त्री की मौत के बाद इंदिरा गांधी को देश की प्रधान मंत्री बनने का अवसर मिला।इंदिरा गांधी को तीन बार प्रधान मंत्री पद पर रहने का मौका मिला। 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उनके पुत्र राजीव गांधी प्रधान मंत्री के पद पर आसीन हुए। सहानुभूति की लहर के चलते कांग्रेस को चार सौ से ज्यादा सीटों पर रिकार्ड जीत मिली थी। 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद उनकी पत्नी सोनिया गांधी ने प्रधान मंत्री बनने की कोशिश की थी। लेकिन विदेशी मूल के मुद्दे पर विरोध के चलते सोनिया गांधी को अपना इरादा बदलना पड़ा। उसके बाद से नेहरू गांधी परिवार की पकड़ देश की सत्ता पर लगातार कमजोर होती गई। फिर भी सोनिया गांधी और राहुल गांधी लोकसभा में मौजूद रह कर अपनी भूमिका अदा करते आ रहे थे। विधि का विधान कि 18वीं लोकसभा में नेहरू गांधी परिवार के किसी सदस्य के मौजूद रहने पर भी प्रश्न चिन्ह लग गया है।

उत्तर प्रदेश के रायबरेली लोक सभा क्षेत्र से 2004 में पहली बार सोनिया गांधी चुनी गई थी। सोनिया गांधी पिछले चार लोकसभा चुनाव रायबरेली से जीत दर्ज कर चुकी है।रायबरेली गांधी परिवार की परंपरागत सीट रही है। 1952 और 1957 में सोनिया गांधी के ससुर फिरोज गांधी रायबरेली से जीत कर संसद में पहुंचे थे। 1967, 1971 और 1980 के लोकसभा चुनाव सोनिया गांधी की सास इंदिरा गांधी ने रायबरेली से जीता था।लेकिन खराब सेहत और विपरीत राजनीतिक हालातों के चलते इस बार सोनिया गांधी ने लोकसभा का चुनाव न लड़ने का निर्णय लिया है। पिछले महीने हुए राज्यसभा चुनाव में सोनिया गांधी राजस्थान से जीत कर संसद में पहुंच चुकी है|

अब तक यह भी साफ हो चुका है कि राहुल गांधी अमेठी से चुनाव लड़ने वाले नहीं है।पिछला लोकसभा चुनाव राहुल गांधी ने अमेठी और वायनाड से लड़ा था। अमेठी से बीजेपी की स्मृति ईरानी ने राहुल को पटकनी दे दी थी। अमेठी भी नेहरू गांधी परिवार की परंपरागत सीट रही है। संजय गांधी 1980 में अमेठी से चुनाव जीते थे।संजय गांधी की हवाई दुर्घटना में मौत के बाद 1981 में राजीव गांधी ने अमेठी से चुनाव जीत कर अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी।1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद सोनिया गांधी ने अमेठी से जीत कर सक्रिय राजनीति में प्रवेश किया था। 2004 से राहुल गांधी अमेठी से चुनाव लड़ रहे थे।

2019 में राहुल गांधी केरल के वायनाड से चुनाव जीते थे। वायनाड लोकसभा सीट का गठन 2008 में डी लिमिटेशन के समय किया गया था। शुरू से वायनाड से कांग्रेस को ही जीत मिलती रही है।2019 में राहुल गांधी ने वायनाड से सीपीआई के पीपी सुनीर को चार लाख से ज्यादा वोटों से हराया था।इतना ही नहीं कांग्रेस ने केरल से सबसे ज्यादा 20 में से 19 सीटों पर जीत हासिल की थी।

कर्नाटक की सीमा पर स्थित वायनाड एक ग्रामीण लोकसभा सीट है।चारों तरफ से हसीन पहाड़ी नजारों से घिरे वायनाड में आदिवासी मतदाता भी बड़ी गिनती में है।कांग्रेस ने राहुल गांधी को वायनाड से चुनाव मैदान में आने की घोषणा कर दी है। लेकिन इस बार वायनाड से राहुल गांधी की राह कांटों से भरी दिख रही है। सीपीआई ने राहुल गांधी के सामने अपनी कद्दावर महिला नेता ऐनी राजा को टिकट दी है।विडंबना यह कि सीपीआई राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस की अगुवाई वाले इंडिया एलायंस का हिस्सा है।लेकिन केरल में सीपीआई कांग्रेस विरोधी एलडीएफ में शामिल है। इसके अलावा इस बार बीजेपी की स्थिति भी केरल में काफी बेहतर है।

लोकसभा चुनाव 2024 में नेहरू गांधी परिवार की एक और सदस्य प्रियंका गांधी वाड्रा के चुनाव लड़ने की संभावना पर भी विराम लग गया है। अटकलें लगाई जा रही थी कि सोनिया गांधी द्वारा छोड़ी गई रायबरेली की सीट से प्रियंका को मैदान में उतारा जा सकता है। लेकिन सोनिया गांधी किसी भी सूरत में प्रियंका को चुनावी राजनीति में उतार कर राहुल गांधी की हैसियत को कम करने के हक में दिखाई नहीं देती।

उत्तर प्रदेश को दिल्ली की सत्ता का प्रवेश द्वार कहा जाता है। अभी तक सबसे ज्यादा प्रधान मंत्री देश को उत्तर प्रदेश ने ही दिए है। जवाहर लाल नेहरू उत्तर प्रदेश की फूलपुर सीट से जीत कर प्रधामंत्री बनते थे। इंदिरा गांधी उत्तर प्रदेश की रायबरेली और राजीव गांधी अमेठी से चुनावी राजनीति करते थे। देश के इतिहास में यह पहला अवसर होगा जब उत्तर प्रदेश से नेहरू गांधी परिवार का कोई भी सदस्य चुनाव मैदान में नहीं होगा।अगर राहुल गांधी वायनाड से चुनाव हार जाते है तो भी यह पहला मौका होगा जब लोकसभा में नेहरू गांधी परिवार का कोई सदस्य नहीं बैठा होगा।