आया राम गया राम की सियासत के लिए मशहूर हरियाणा के बड़े राजनीतिक घराने को दल बदलना महंगा पड़ रहा है। देश भर में जाट और किसान राजनीति के लिए जाने वाले सर छोटू राम के परिवार को कांग्रेस ने टिकट देने से मना कर दिया। मजेदार बात यह कि कांग्रेस ने टिकट न देने का कारण किसानों का विरोध बताया है। कांग्रेस ने हरियाणा के बड़े जाट नेता वीरेंद्र सिंह के बेटे बृजेंद्र सिंह का हिसार से टिकट आखरी मौके पर काट,दिया है। इस घटनाक्रम के बाद बीरेंद्र सिंह को हरियाणा की राजनीति का ट्रैजडी किंग कहा जाने लगा है।

आजादी से पहले सर छोटू राम अंग्रेज सरकार से किसानों के मुद्दो पर लड़ते थे। बहुमुखी प्रतिभा के धनी सर छोटू राम पेशे से वकील, आर्य समाज को मानने वाले और समाज सुधारक थे। उन्होंने कई शिक्षण संस्थाएं शुरू की। जाट गजट नाम का अखबार शुरू किया जो आज भी छपता है। सर छोटू राम ने किसानों के शोषण और साहूकार प्रथा के खिलाफ कार्य किया। देश भर के जाट बहुल इलाकों में जाकर जाट नेता तैयार किए। 

सर छोटू राम बीरेंद्र सिंह के नाना थे। बीरेंद्र सिंह के पिता नेकी राम भी संयुक्त पंजाब में राजनीति करते थे। बीरेंद्र सिंह के परिवार का कांग्रेस से 55 साल पुराना नाता है। लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले बीरेंद्र सिंह बीजेपी में शामिल हो गए थे। उस समय उनको कांग्रेस में अपना कोई भविष्य नहीं दिख रहा था। लेकिन करीब नौ साल बीजेपी में रहने के बाद अप्रैल 2024 में बीरेंद्र सिंह वापिस कांग्रेस में शामिल हो गए। बीरेंद्र सिंह ने अग्निवीर, किसान और पहलवानों के मसले को बीजेपी छोड़ने का कारण बताया। 

बीरेंद्र सिंह ने 1977 में उचाना कलां से विधानसभा का पहला चुनाव लड़ा और प्रचंड कांग्रेस विरोधी लहर के बाद भी विजयी रहे। इस जीत के बाद बीरेंद्र सिंह हरियाणा की राजनीति के स्टार बन गए। बीरेंद्र सिंह कुल पांच बार विधायक बने और हरियाणा सरकार के मंत्री के रूप में काम किया। 1984 में हिसार लोकसभा क्षेत्र से बीरेंद्र सिंह ने ओम प्रकाश चौटाला को हराया। 2010 में बीरेंद्र सिंह कांग्रेस की ओर से राज्यसभा के सदस्य चुने गए और मनमोहन सिंह सरकार में मंत्री बने। 2014 में बीरेंद्र सिंह राज्यसभा से इस्तीफा देकर बीजेपी में शामिल हो गए। अपने शेष बचे दो साल के कार्यकाल के लिए बीरेंद्र सिंह को बीजेपी की ओर से राज्यसभा में भेज दिया गया। 2016 में बीरेंद्र सिंह को एक बार बीजेपी ने राज्यसभा में भेज दिया। बीरेंद्र सिंह को नरेंद्र मोदी की दोनो सरकारों में मंत्री के पद पर काम करने का मौका मिला। 

बीजेपी का रंग बीरेंद्र सिंह पर कुछ ऐसा चढ़ा कि 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले अपने बेटे बृजेंद्र सिंह को आईएएस से त्याग पत्र दिलवा कर हिसार से चुनाव मैदान में उतार दिया। बृजेंद्र सिंह हिसार से चुनाव जीते। बीरेंद्र सिंह ने वायदा किया था कि बेटे के सांसद बनते ही वे सक्रिय राजनीति से सन्यास ले लूंगा। वायदे के मुताबिक बीरेंद्र सिंह ने कार्यकाल पूरा होने से दो साल पहले ही राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया। 

पत्रकारों से बात करते हुए बीरेंद्र सिंह ने कहा कि राजनीति अनिश्चितता का खेल है। कोई नहीं कह सकता कि अगले पल क्या हो जाए। उन्होंने कहा कि उनके राजनीतिक जीवन में पहले भी ऐसा हो चुका है। 1991 में कांग्रेस बीरेंद्र सिंह के नेतृत्व में हरियाणा विधान सभा का चुनाव जीती थी। लेकिन मुख्यमंत्री किसी ओर को बना दिया गया था। ऐसा ही अब उनके बेटे बृजेंद्र सिंह के साथ हो रहा है। बीरेंद्र सिंह ने कहा कि बृजेंद्र सिंह ने लोकसभा से इस्तीफा देकर कांग्रेस की सदस्यता ली थी। यह जाहिर था कि उसे हिसार से टिकट दिया जाएगा। बीरेंद्र सिंह ने कहा कि वे विचारधारा के आधार पर कांग्रेस में आए है और कांग्रेस में बने रहेंगे। 

पता चला है कि किसान नेता हिसार से बृजेंद्र सिंह की उम्मीदवारी का विरोध कर रहे थे। किसान नेताओं ने सोनिया गांधी और राहुल गांधी से संपर्क किया था। कांग्रेस के हरियाणा के प्रभारी दीपक बाबरिया से भी मुलाकात की थी। किसान नेताओं का कहना था कि उनका कांग्रेस को समर्थन देने का इरादा है। लेकिन वे किसी भी उस व्यक्ति का विरोध करेगे जिसने तीन कृषि कानूनों का समर्थन किया है। बृजेंद्र सिंह को टिकट न मिलने पर किसानों ने उचाना कलां में खुशी मनाई और मिठाई बांटी। उन्होंने कांग्रेस के इस कदम का स्वागत करते हुए पार्टी नेतृत्व का आभार जताया। 

कांग्रेस से टिकट न मिलने के बाद युवा नेता बृजेंद्र सिंह के राजनीति भविष्य पर प्रश्न चिन्ह लग गया है। बीजेपी में जाने का रास्ता भी अब बंद है। बृजेंद्र सिंह का टिकट कटने के बाद बीरेंद्र सिंह मीडिया में काफी मुखर है। बीरेंद्र सिंह के बयानों के आधार पर उनको हरियाणा की राजनीति के ट्रैजदी किंग की संज्ञा दी जा रही है।